कई बार पूरा दिन भूखे पेट वो यही काम करते हैं क्योंकि उनको बीच में कहीं कुछ खाने को नहीं मिलता है। आलू खरीदने का पैसा वह पड़ोसियों से उधार लेकर जाते हैं। शाम को घर पहुंचने के बाद ही उन्हें कुछ खाने को मिलता है। अलबरकात स्कूल के पीछे मौलाना आजाद नगर क्षेत्र स्थित राबिया मस्जिद के पास रहने वाले अरमान और नबी हुसैन मुफलिसी की ये मार झेल रहे हैं। उनकी आंखें नम हो जाती हैं अब्बू की याद में, लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारे। अगर, लॉकडाउन न होता तो शायद पड़ोसी भी मदद करते लेकिन अब सभी अपनी अपनी रोटी का इंतजाम बुमश्किल कर पा रहे हैं तो उनकी मदद भला कौन करेगा..? हां, कुछ पड़ोसी पैसा जरूर उधार दे देते हैं।
दोनों को अभी तक प्रशासन की ओर से कोई राशन नहीं मिला है। रविवार को अलबरकात स्कूल के सामने आलू की ढकेल लेकर जा रहे दोनों भाइयों ने बताया कि वह मस्जिद के पास रहते हैं। अम्मी अफसाना बीमार हैं। अब्बू शब्बीर एक महीने पहले ही बीमारी से चल बसे। उस वक्त सीएए के विरोध में बहुत संकट झेला था। जब घर में खाने को कुछ नहीं बचा और भूखे मरने की नौबत आई तो पड़ोसियों से मशविरा कर आलू बेचने निकल पड़े हैं, जो कमाते हैं उसमें ही गुजारा कर रहे हैं। रविवार को उनका दोस्त तालिब भी साथ हो लिया था। ये बच्चे कहते हैं कि वह हर सुबह ऊपरवाले से करम की दुआ मांगते हैं और घर से निकल पड़ते हैं। लॉकडाउन की भूखमरी के दौर में इन बच्चों की हिम्मत काबिल ए तारीफ है, लेकिन यह कहानी किन्हीं दो बच्चों की नहीं है शहर के कई परिवारों का हाल ऐसा ही है।

