डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंसिंग तोड़ने के अच्छे नतीजे नहीं मिलेंगे। मजदूरों का सामूहिक पलायन खतरे की घंटी बजा रहा है। अगले दो सप्ताह बहुत अहम हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा चक्र टूटने से कोरोना का संक्रमण कितना बढ़ता है, यह देखने वाली बात होगी। देश का सबसे बड़ा क्वारंटीन सेंटर छावला स्थित आईटीबीपी परिसर में बनाया गया है। वहां के डॉक्टर राजकुमार बताते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग को अभी हमारे देश में उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। ये बहुत गलत है। लॉकडाउन का मतलब लोगों को अपने घरों से बाहर नहीं निकलना है।
लोगों के बीच कम से कम छह फुट की दूरी रहे। कोरोना संक्रमण को आगे फैलने से रोकने के लिए यह सबसे अधिक कारगर तरीका माना जाता है। दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर जिस तरह से हजारों लोग एक साथ एकत्रित हो गए, वह बहुत खतरनाक स्थिति का संकेत है।
अगर ऐसी भीड़ में चार पांच व्यक्तियों को भी कोरोना का संक्रमण है तो वह आगे चलकर चेन बनाते हुए हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। ये लोग सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा चक्र तो बहुत पहले ही तोड़ चुके हैं और अब इनके पास कोरोना से बचाव का कोई दूसरा उपाय भी नहीं है। न सैनिटाइजर हैं और न ही मास्क। कोई अपने मुंह पर रूमाल बांधे है तो महिला चुन्नी से मुंह ढके हुए है। अब यह कोई नहीं जानता कि ये सब सैनिटाइज हैं या नहीं। आने वाले दो सप्ताह अब बहुत अहम होंगे। कई बार कोरोना का लक्षण दस बारह दिन बाद सामने आता है। दस अप्रैल के बाद का समय बहुत चिंतित करने वाला है। चूंकि जहां से ये लोग चले हैं, वहां भी इनकी जांच नहीं हुई और जहां पर ये पहुंचेंगे, वहां भी अभी तक ऐसी पुख्ता जांच किए जाने की व्यवस्था होती नहीं दिख रही।
मेदांता अस्पताल की डॉक्टर नीलम मोहन के अनुसार, लॉकडाउन में अगर ऐसी भीड़ हो रही है तो एक आदमी सैंकड़ों लोगों में संक्रमण फैला सकता है। कोरोना की शिफ्टिंग को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि यह बहुत तेजी से आगे बढ़ता है।
लोगों के बीच कम से कम छह फुट की दूरी रहे। कोरोना संक्रमण को आगे फैलने से रोकने के लिए यह सबसे अधिक कारगर तरीका माना जाता है। दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर जिस तरह से हजारों लोग एक साथ एकत्रित हो गए, वह बहुत खतरनाक स्थिति का संकेत है।अगर ऐसी भीड़ में चार पांच व्यक्तियों को भी कोरोना का संक्रमण है तो वह आगे चलकर चेन बनाते हुए हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले सकता है। ये लोग सोशल डिस्टेंसिंग का सुरक्षा चक्र तो बहुत पहले ही तोड़ चुके हैं और अब इनके पास कोरोना से बचाव का कोई दूसरा उपाय भी नहीं है। न सैनिटाइजर हैं और न ही मास्क। कोई अपने मुंह पर रूमाल बांधे है तो महिला चुन्नी से मुंह ढके हुए है। अब यह कोई नहीं जानता कि ये सब सैनिटाइज हैं या नहीं। आने वाले दो सप्ताह अब बहुत अहम होंगे। कई बार कोरोना का लक्षण दस बारह दिन बाद सामने आता है। दस अप्रैल के बाद का समय बहुत चिंतित करने वाला है। चूंकि जहां से ये लोग चले हैं, वहां भी इनकी जांच नहीं हुई और जहां पर ये पहुंचेंगे, वहां भी अभी तक ऐसी पुख्ता जांच किए जाने की व्यवस्था होती नहीं दिख रही।
मेदांता अस्पताल की डॉक्टर नीलम मोहन के अनुसार, लॉकडाउन में अगर ऐसी भीड़ हो रही है तो एक आदमी सैंकड़ों लोगों में संक्रमण फैला सकता है। कोरोना की शिफ्टिंग को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि यह बहुत तेजी से आगे बढ़ता है।
